Monday, 26 June 2017

joint pain का आयुर्वेदिक ईलाज

joint pain  का  आयुर्वेदिक ईलाज - 
सदियों से आयुर्वेद को जोड़ों के दर्द का उपचार उपलब्ध कराने में शीर्ष स्थान प्राप्त है। संभवत: अन्य किसी भी उपचार पद्धति में जोड़ों से संबंधित रोगों और इनके उपचार की इतनी बेहतर पकड़ नहीं है, जितनी कि आयुर्वेद में है। भारत में पीढिय़ों से विशेष रूप से अधिक उम्र के व्यक्ति जोड़ों के दर्द से छुटकारा पाने के लिए आयुर्वेद का लाभ लेते रहें हैं।
 आज भी उम्र के दूसरे पड़ाव में जोड़ों के दर्द की शिकायत सबसे अधिक सुनने को मिलती है। वरिष्ठ नागरिकों में घुटनों का दर्द सामान्य समस्या हो गई है, हालांकि इस उम्र के लोगों में अन्य जोड़ों की समस्या भी देखी जाती है।
युवा और वृद्धावस्था, दोनों में जोड़ों के दर्द से परेशान लोगों के लिए आयुर्वेद राम बाण की तरह है। भारत में जुलाई से लेकर अगस्त के अन्त तक बारिश के मौसम में जोड़ों के दर्द की समस्या और बढ़ जाती है। शायद यह समय आपको यह समझने के लिए सबसे अच्छा होगा कि इस कष्ट से छुटकारा पाने में आयुर्वेद आपकी मदद कैसे कर सकता है।
जोड़ों के दर्द के कारण
जोड़ों में दर्द और सूजन उस समय होती है, जब जोड़ों के सामन्य रूप से काम करने या फिर संरचना में कोई गड़बड़ी पैदा हो जाए। जोड़ों का दर्द अनेक परिस्थितियों और कारणों से हो सकता है। इसके मुख्य कारण हैं, सूजन, संक्रमण यानी इन्$फेक्शन, चोट लगना, एलर्जी और जोड़ों का सामन्य रूप से घिसना। 
रह्यूमेटॉएड आर्थराटिस, ऑस्टिओआर्थराइटिस, गाउट, वॉयरल ऑर्थराइटिस, रह्यूमेटिक लाइम डिजीज, ड्रग-इंड्यूस्ड आर्थराइटिस, बर्साइटिस और मोटापा जोड़ों में दर्द के कुछ मेडिकल कारण हैं।
जोड़ों के दर्द पर आयुर्वेद का विचार
जोड़ों की तकलीफों के समाधान, रख-रखाव और उपचार के लिए आयुर्वेद की अपनी अवधारणा और नैदानिक सोच है। आयुर्वेद में जोड़ों को संधि कहा जाता है और जोड़ अस्थि व मज्जा धातु से मिलकर बनते हैं। जोड़ों को बांध कर रखने वाले लिगामेंट रक्त धातु से बने होते हैं, जो पित्त दोष के अधीन होती है। श्लेषक कफ, जोड़ों को चिकनापन प्रदान करता है, जबकि जोड़ों की गति के लिए वात का महत्व है।
 इन सभी दोषों के गुण एक-दूसरे के लगभग विपरीत हैं। कफ, तैलीय, चिपचिपा, गाढ़ा और मंद होता है, वहीं वात शुष्क और गतिमान होता है। दूसरी ओर पित्त गर्म, तीव्र और स्थिर होता है। जोड़ों में इन सभी दोषों का बहुत जटिल संतुलन होता है और जरा भी असंतुलित होने पर जोड़ों की संरचना व कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है, जिसका परिणाम होता है-जोड़ों में दर्द।
जोड़ों के कुशलता से काम करते रहने के लिए वात का मुक्त प्रवाह होना अनिवार्य है। यदि इसके मार्ग में कोई रुकावट आती है, तो जोड़ों के सही तरह से काम करने पर प्रतिकूल असर पड़ता है, और यह दर्द पैदा कर सकता है। आयुर्वेद के अनुसार खाए गए भोजन को जठराग्नि पचाती है। जब जठराग्नि मंद पड़ जाती है, तो पाचन गड़बड़ा जाता है। खराब पाचन के कारण शरीर में आम एकत्रित होता है और जब ये विषाक्त पदार्थ यानी आम जोड़ों में इकट्ठा होने लगता है, तो वात के मार्ग को अवरुद्ध करता है, जिसके कारण जोड़ों का दर्द पैदा होता है।
जोड़ों के दर्द में आयुर्वेदिक उपचार
जोड़ों के दर्द में आयुर्वेदिक उपचार, समग्र रूप से रोग की जड़ पर काम करता है। इस उपचार में विभिन्न नियमों के अनुसार काम किया जाता है। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं।
दीपन: दवाओं और उपवास (व्रत) की मदद से जठराग्नि प्रदीप्त करना। जब शरीर में विषाक्त तत्व जमा हो जाने के कारण व्यक्ति की भूख कम हो जाती है, तो जठराग्नि प्रदीप्त करने के लिए इस नियम का प्रयोग किया जाता है।
पाचन: दवाओं, जड़ी-बूटियों, पाचक पदार्थों और व्यायाम की मदद से विषाक्त तत्वों को पचाना। 
जोड़ों और शरीर में विषाक्त तत्वों का जमा हो जाना अक्सर जोड़ों के दर्द का मुख्य कारण होता है, इसलिए पाचन नियम से इन तत्वों को पचाने और शरीर से बाहर निकालने में मदद मिलती है। अमृता, निर्गुण्डी और शुण्ठी जैसी औषधियां शरीर के आम को पचाने में बहुत सहायक हैं।
स्नेहन: तेल मालिश, ऑयल बाथ या स्निग्ध भोजन में घी का सेवन करना, बढ़े हुए वात को कम करने के लिए बहुत प्रभावी है। तेल, घी, मज्जा और वसा जैसे तैलीय पदार्थों का सेवन जोड़ों के दर्द के उपचार में बहुत प्रभावी है। इसके अलावा जोड़ों के दर्द में पंचकर्म पद्धति जैसे स्वेदन, विरेचन, बस्ती और लेपन की सलाह भी दी जाती है।

आयुर्वेदिक आहार ,और इसका सेवन कैसे करे ?

आयुर्वेदिक आहार ,और इसका सेवन कैसे करे ?


 एक साथ नहीं खानी चाहिए
  • चाय के साथ कोई भी नमकीन चीज नहीं खानी चाहिए।दूध और नमक का संयोग सफ़ेद दाग या किसी भी स्किन डीजीज को जन्म दे सकता है, बाल असमय सफ़ेद होना या बाल झड़ना भी स्किन डीजीज ही है।
  • सर्व प्रथम यह जान लीजिये कि कोई भी आयुर्वेदिक दवा खाली पेट खाई जाती है और दवा खाने से आधे घंटे के अंदर कुछ खाना अति आवश्यक होता है, नहीं तो दवा की गरमी आपको बेचैन कर देगी।
  • दूध या दूध की बनी किसी भी चीज के साथ दही ,नमक, इमली, खरबूजा,बेल, नारियल, मूली, तोरई,तिल ,तेल, कुल्थी, सत्तू, खटाई, नहीं खानी चाहिए।
  • दही के साथ खरबूजा, पनीर, दूध और खीर नहीं खानी चाहिए।
  • गर्म जल के साथ शहद कभी नही लेना चाहिए।
  • ठंडे जल के साथ घी, तेल, खरबूज, अमरूद, ककड़ी, खीरा, जामुन ,मूंगफली कभी नहीं।
  • शहद के साथ मूली , अंगूर, गरम खाद्य या गर्म जल कभी नहीं।
  • खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई, खिचड़ी ,कटहल कभी नहीं।
  • घी के साथ बराबर मात्र1 में शहद भूल कर भी नहीं खाना चाहिए ये तुरंत जहर का काम करेगा।
  • तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं।
  • चावल के साथ सिरका कभी नहीं।
  • चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी मत खाएं।
  • खरबूज के साथ दूध, दही, लहसून और मूली कभी नहीं।
कुछ चीजों को एक साथ खाना अमृत का काम करता है जैसे-
  • खरबूजे के साथ चीनी
  • इमली के साथ गुड
  • गाजर और मेथी का साग
  • बथुआ और दही का रायता
  • मकई के साथ मट्ठा
  • अमरुद के साथ सौंफ
  • तरबूज के साथ गुड
  • मूली और मूली के पत्ते
  • अनाज या दाल के साथ दूध या दही
  • आम के साथ गाय का दूध
  • चावल के साथ दही
  • खजूर के साथ दूध
  • चावल के साथ नारियल की गिरी
  • केले के साथ इलायची
कभी कभी कुछ चीजें बहुत पसंद होने के कारण हम ज्यादा बहुत ज्यादा खा लेते हैं। ऎसी चीजो के बारे में 

बताते हैं जो अगर आपने ज्यादा खा ली हैं तो कैसे पचाई जाएँ ----
  • केले की अधिकता में दो छोटी इलायची
  • आम पचाने के लिए आधा चम्म्च सोंठ का चूर्ण और गुड
  • जामुन ज्यादा खा लिया तो ३-४ चुटकी नमक
  • सेब ज्यादा हो जाए तो दालचीनी का चूर्ण एक ग्राम
  • खरबूज के लिए आधा कप चीनी का शरबत
  • तरबूज के लिए सिर्फ एक लौंग
  • अमरूद के लिए सौंफ
  • नींबू के लिए नमक
  • बेर के लिए सिरका
  • गन्ना ज्यादा चूस लिया हो तो ३-४ बेर खा लीजिये
  • चावल ज्यादा खा लिया है तो आधा चम्म्च अजवाइन पानी से निगल लीजिये
  • बैगन के लिए सरसो का तेल एक चम्म्च
  • मूली ज्यादा खा ली हो तो एक चम्म्च काला तिल चबा लीजिये
  • बेसन ज्यादा खाया हो तो मूली के पत्ते चबाएं
  • खाना ज्यादा खा लिया है तो थोड़ी दही खाइये
  • मटर ज्यादा खाई हो तो अदरक चबाएं
  • इमली या उड़द की दाल या मूंगफली या शकरकंद या जिमीकंद ज्यादा खा लीजिये तो फिर गुड खाइये
  • मुंग या चने की दाल ज्यादा खाये हों तो एक चम्म्च सिरका पी लीजिये
  • मकई ज्यादा खा गये हो तो मट्ठा पीजिये
  • घी या खीर ज्यादा खा गये हों तो काली मिर्च चबाएं
  • खुरमानी ज्यादा हो जाए तोठंडा पानी पीयें
  • पूरी कचौड़ी ज्यादा हो जाए तो गर्म पानी पीजिये
अगर सम्भव हो तो भोजन के साथ दो नींबू का रस आपको जरूर ले लेना चाहिए या पानी में मिला कर 

पीजिये या भोजन में निचोड़ लीजिये ,८०% बीमारियों से बचे रहेंगे।

Sunday, 25 June 2017

उच्‍च रक्‍तचाप या हाइपरटेंशन का आयुर्वेदिक उपचार

उच्‍च रक्‍तचाप या हाइपरटेंशन का आयुर्वेदिक उपचार

 

उच्‍च रक्‍तचाप से दिल की बीमारी, स्‍ट्रोक और यहां तक कि गुर्दे की बीमारी होने का भी खतरा रहता है। उच्‍च रक्‍तचाप के लिए मेडीकल पर बहुत ज्‍यादा भरोसा करना सही है, इससे आप ठीक भी हो जाएंगे, लेकिन अधिक समय तक यह उपचार लाभकारी नहीं होता है। जब तक आप दवा खाते रहेगें, तब तक आराम रहेगा। बाजार में उच्‍च रक्‍तचाप के लिए कई दवाईयां उपलब्‍ध हैं, जो हाई ब्‍लड़ – प्रेशर को कंट्रोल कर लेती है लेकिन ज्‍यादा दवाई खाना भी सेहत के घातक है, एक समय के बाद दवाईयों का असर धीमा पड़ने लगता है। इसलिए उच्‍च रक्‍तचाप के मामले में हर्बल उपचार भी लाभकारी होता है।

1 लहसुन – लहसुन उन रोगियों के लिए लाभकारी होता है जिनका ब्‍लड़प्रेशर हल्‍का सा बढ़ा रहता है। ऐसा माना जाता है कि लहसुन में एलिसीन होता है, जो नाइट्रिक ऑक्‍साइड के उत्‍पादन हो बढ़ाता है और मांसपेशियों की धमनियों को आराम पहुंचाता है और ब्‍लड़प्रेशर के डायलोस्टिक और सिस्‍टोलिक सिस्‍टम में भी राहत पहुंचाता है।
2 सहजन – सहजन का एक नाम ड्रम स्‍टीक भी होता है। इसमें भारी मात्रा में प्रोटीन और गुणकारी विटामिन और खनिज लवण पाएं जाते है। अध्‍ययन से पता चला है कि इस पेड़ के पत्‍तों के अर्क को पीने से ब्‍लड़प्रेशर के सिस्‍टोलिक और डायलोस्टिक पर सकारात्‍मक प्रभाव पड़ता है। इसे खाने का सबसे अच्‍छा तरीका इसे मसूर की दाल के साथ पकाकर खाना है।
3 आंवला – परम्‍परागत तौर पर माना जाता है कि आंवला से ब्‍लड़प्रेशर घटता है। वैसे आंवला में विटामिन सी होता है जो रक्‍तवहिकाओं यानि ब्‍लड़ वैसेल्‍स को फैलाने में मदद करता है और इससे ब्‍लड़प्रेशर कम करने में मदद मिलती है। आवंला, त्रिफला का महत्‍वपूर्ण घटक है जो व्‍यवसायिक रूप से उपलब्‍ध है।
4 मूली – यह एक साधारण सब्‍जी है जो हर भारतीय घर के किचेन में मिलती है। इसे खाने से ब्‍लड़प्रेशर की बढ़ने वाली समस्‍या का निदान संभव है। इसे पकाकर या कच्‍चा खाने से बॉडी में उच्‍च मात्रा में मिनरल पौटेशियम पहुंचता है जो हाई – सोडियम डाईट के कारण बढ़ने वाले ब्‍लड़प्रेशर पर असर ड़ालता है।
5 तिल – हाल ही के अध्‍ययनों में पता चला है कि तिल का तेल और चावल की भूसी का तेल एक शानदार कॉम्‍बीनेशन है, जो हाइपरटेंशन वाले मरीजों के ब्‍लड़प्रेशर को कम करता है। और माना जाता है कि ब्‍लड़प्रेशर कम करने वाली दवाईयों से ज्‍यादा बेहतर होता है।
6 फ्लैक्‍ससीड या अलसी – फ्लैक्‍ससीड या लाइनसीड में एल्‍फा लिनोनेलिक एसिड बहुतायत में पाया जाता है जो कि एक प्रकार का महत्‍वपूर्ण ओमेगा – 3 फैटी एसिड है। कई अध्‍ययनों में भी पता चला है कि जिन लोगों को हाइपरटेंशन की शिकायत होती है उन्‍हे अपने भोजन में अलसी का इस्‍तेमाल शुरू करना चाहिए। इसमें कोलेस्‍ट्रॉल की मात्रा भी बहुत ज्‍यादा नहीं होती है और ब्‍लड़प्रेशर भी कम हो जाता है।
7 इलायची – बायोकैमिस्‍ट्री और बायोफिजिक्‍स के एक भारतीय जर्नल में एक अध्‍ययन प्रकाशित किया गया जिसमें बताया गया कि बेसिक हाइपरटेंशन के 20 लोग शामिल थे, जिन्‍हे 3 ग्राम इलायची पाउडर दिया गया। तीन महीने खत्‍म होने के बाद, उन सभी लोगों को अच्‍छा फील हुआ और इलायची के 3 ग्राम सेवन से उनको कोई साइडइफेक्‍ट भी नहीं हुआ। इसके अलावा, अध्‍ययन में यह भी बताया गया कि इससे ब्‍लड़प्रेशर भी प्रभावी ढंग से कम होता है। इससे एंटी ऑक्‍सीडेंट की स्थिति में भी सुधार होता है जबकि इसके सेवन से फाइब्रिनोजेन के स्‍तर में बिना फेरबदल हुए रक्‍त के थक्‍के भी टूट जाते है।
8 प्‍याज – प्‍याज में क्‍योरसेटिन होता है, एक ऐसा ऑक्‍सीडेंट फ्लेवेनॉल जो दिल को बीमारियों से अटैक पड़ने बचाता है।
दालचीनी– दालचीनी केवल इंसान को केवल दिल की बीमारियों से नहीं बल्कि डायबटीज से बचाता है। ओहाई के एप्‍लाईड हेल्‍थ सेंटर में 22 लोगों पर अध्‍ययन किया गया, जिनमें से आधे लोगों को 250 ग्राम पानी में दालचीनी को दिया गया जबकि आधे लोगों को कुछ और दिया गया। बाद में यह पता चला कि जिन लोगों ने दालचीनी का घोल पिया था, उनके शरीर में एंटीऑक्‍सीडेंट की मात्रा ज्‍यादा अच्‍छी थी और ब्‍लड सुगर भी कम थी।

नकसीर का इलाज आयुर्वेदिक उपायों से करें

 नकसीर  का इलाज आयुर्वेदिक उपायों से करें

नाक से खून बहने की समस्या को नकसीर कहते हैं।

अनार के सूखे पत्तों का चूरा बनाकर सूंघने से आराम मिलता है।

दो बूंदें नींबू का रस नथुने में डालने से भी राहत मिलती है।

अगर आप धूम्रपान के आदि हैं, तो उसे तुरंत रोक दें।


गर्मी के दिनों में नाक से खून बहने की समस्या हममें से कई लोगों को परेशान करती है।
 इस समस्या को नकसीर के नाम से भी जाना जाता है। 
अगर आपके नाक की एक तरफ से बिना चेतावनी के, खून बहने लगता है, 
तो वह मौसम, शारीरिक व्यायाम, छींकें, और सर्दी-जुकाम के कारण होता है। 
अगर आपकी उम्र 50 से अधिक है और आप अनवरत रूप से रक्तस्राव के शिकार हैं 
तो अपने रक्तचाप का परिक्षण कराएँ, क्योंकि उच्च रक्तचाप रक्त पात्रों को हानि पहुँचाता है,
 जिससे प्रचुर मात्रा में रक्तस्राव होने लगता है।

नकसीर के लक्षण और कारण


कारण: संक्रमण, उच्च रक्तचाप, रक्त को पतला करने की औषधि का सेवन
 करना, मदिरापान, नाक में हल्की सी चोट, नाक  को ज़ोर लगाकर साफ़ करना,
 सर्दी-ज़ुकाम या फ्लू, कोकेन का अधिक मात्रा में प्रयोग करना, साइनस संक्रमण वगैरह।
लक्षण: एक या दोनों नथुनियों से रक्तस्राव, उनींदापन, नकसीर के कारण सदमा या असमंजस। 



नकसीर के आयुर्वेदिक उपचार

  • फिटकरी के पाउडर को गाय के घी के साथ मिलाकर
  •  नोज़ ड्रॉप्स की तरह नाक में डालने से नकसीर को रोकने में सहायता मिलती है।
  • थोडा सा कपूर, धनिये के पत्तों के रस में मिला दें और इस मिश्रण को नाक में डालें।
  •  इस मिश्रण को नाक में  डालने से नाक से खून बहना जल्दी बंद हो जाता है।
  • 20 ग्राम आंवले को पूरी रात पानी में सोख कर रखें, 
  • और सुबह उस पानी को छान कर पी लें और आमला की लेई को अपने माथे 
  • और नाक के आसपास मल दें। इससे भी नाक का ख़ून रुकने में आपको काफी मदद मिलेगी। 
  • लाल चन्दन, मुलेठी, और नाग केसर को समान मात्रा में मिलाकर चूरा बना लें और
  •  उसमे से 3 ग्राम चूरा दूध के साथ लेने से भी आपको
  •  नकसीर में लाभ मिलेगा
  • अनार के सूखे पत्तों का चूरा बनाकर सूंघने से भी 
  • नाक से रक्त का बहना काफी हद तक रुक सकता है।

  • आम की गुठली के रस को सूंघने से भी नकसीर में लाभ मिलता है।
  • 2 ग्राम केले के पेड़ के पत्ते, 20 ग्राम क्रिस्टल शुगर और
  •  1-1/2 लीटर पानी का मिश्रण दिन में एक बार पीने से गंभी से 
  • गम्भीर नकसीर में भी लाभ मिलता है।
  • एक दो बूँदें नींबू का रस नथुने में डालने से भी नाक से रक्तस्राव काफी हद तक रुक जाता है।
  • एक ग्लास पानी में एक चुटकी नमक डाल दें
  •  और इस पानी को नाक में स्प्रे करें। ऐसा करने से नाक में से रक्तस्राव कम हो जाता है।

  • जब नकसीर होता है तब यह पक्का कर लें आस पास का वातावरण शुष्क तो नहीं है।
  •  अगर है तो किसी अच्छे एयर ह्यूमिडीफायर से वातावरण को नम रखें 
  • जिससे आपके नाक की कार्यशीलता हल्की हो जायेगी और नाक से रक्तस्राव नहीं होगा।
  • नाक के बाहरी हिस्से पर आइस पैक लगायें।
  •  यह बहुत ही सरल और असरदार तरीका है नाक से रक्तस्राव रोकने का।
  • गीला तौलिया अपने सर पर रखने से भी नकसीर में लाभ मिलता है। 

नकसीर के अन्य उपचार


  • कुर्सी पर शांत रूप से बैठें और अपना सिर पीछे की तरफ न झुकायें, 
  • और सामान्य स्थिति में रहने दें, ताकि रक्तस्राव गले के पीछे से नहीं बल्कि नाक से आसानी से हो सके।

  • आइस पैक या आइस क्यूब नाक पर लगाने से भी रक्तस्राव को रोकने में सहायता मिलती है।
  • अगर आप धूम्रपान के आदि हैं, तो उसे तुरंत रोक दें।
  • शुष्क वातावारण में रहने से बचें। एयर कंडिशनर और एयर कूलर उत्तम होते हैं
  •  क्योंकि वे हवा में नमी को बनाये रखते हैं।

  • गर्भनिरोधक गोलियों के प्रयोग में सावधानी बरतें, 
  • क्योंकि गलत गोलियों के प्रयोग से नाक से रक्तस्राव शुरू हो सकता है।
                                                  आगे 

HONEY शहद के लाभ।

HONEY शहद के लाभ। 

शहद हमारे आहार में सबसे महत्वपूर्ण शक्तिशाली भोजन में से एक है। यह एक आश्चर्यजनक भोजन है, जो हमारे शरीर के 'स्वास्थ्य' के लिए चिंतित है! आयुर्वेद के प्राचीन सिद्धांतों के मुताबिक, शहद एक दवा है, भोजन नहीं है। आर्ट ऑफ़ लिविंग फाउंडेशन के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ अश्विन पटेल के कथन अनुसार, "आयुर्वेद का कहना है, शहद को केवल एक प्रशिक्षित आयुर्वेदिक डॉक्टर से परामर्श करने के बाद ही खाया जाना चाहिए।" "इसका उपयोग व्यक्ति के पाँच प्राथमिक तत्वों, पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के संबंधित जानकारी की बातचीत के आधार पर निर्धारित होता है।"

फाउंडेशन के अन्य डॉक्टर भी शहद को एक प्रभावशाली उत्प्रेरक के रूप में बताते हैं जो आयुर्वेदिक दवाओं और अन्य सुपरफ़ूड के लाभ को बढ़ाता है, जैसे पीलिया के लिए केले, घावों के लिए नीम का पेस्ट और अनिद्रा के लिए नींबू का रस।

यह सभी प्रकार की बीमारियों के लिए एक उल्लेखनीय उपचारक है। इसकी पोषण संबंधी जानकारी का दावा है कि शहद के एक बडे चम्मच में 64 कैलोरी है और इसमें कोई चरबी या कोलेस्ट्रॉल नहीं है। शहद अप्रसारित चीनी ऊर्जा का शानदार स्रोत है। इसकी उच्च कार्बोहाइड्रेट भार के कारण यह ऊर्जा बूस्टर की भूमिका निभाता है। शहद मस्तिष्क में कैल्शियम को अवशोषित करने में भी मदद करता है और यह हमारी स्मृति को तेज करता है। गोल्डन मिल्क एक आयुर्वेद नुस्खा है जिसमें हल्दी, शहद, बादाम का दूध और काली मिर्च का इस्तेमाल होता है, जिससे सूजन को कम करने में मदद मिलती है और शरीर को शांति के साथ रात को अच्छा आराम देता है।चीनी के विकल्प के रूप में या एक प्रासंगिक फेस पैक की तुलना में इस सुपर-फूड के लाभ बहुत अधिक है।


श्वसन संबंधी बीमारियां

 शहद का हल्दी से मिश्रण होता है और श्वसन संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए आयुर्वेद में इस्तेमाल होता है जिससे फेफड़े, गले और नाक में संकुलन होता है। यदि आप साइनस की समस्याओं से पीड़ित हैं, तो गर्म पानी में शहद मिलाएं और राहत के लिए भाप को श्वास में लें।

ड्रेसिंग के घाव


नीम पेस्ट, हल्दी पाउडर और थोड़ा सा शुद्ध घी के साथ शहद के मिश्रण की सिफारिश की। यह रक्तस्राव के घाव पर एक उपचारकारी बाम के रूप में कार्य करता है, और दर्द को भी कम करता है, इसके एंटीबायोटिक गुणों के लिए धन्यवाद।

आर्टेरोसलेरोसिस (धमनी काठिन्य)

नींबू के रस के साथ मिश्रित शहद का एक चम्मच धमनियों को खोलकर साफ करने के लिए एक लोकप्रिय आयुर्वेदिक उपचार है (धूम्रपान, गठिया, मधुमेह और मोटापे द्वारा आमतौर पर धमनीकाठिन्य के रूप में जाना जाने वाला एक तथ्य है)।

वजन घटाने

 "हर दिन शहद का एक छोटी मात्रा (एक चम्मच) में सेवन करने से वजन कम करने में मदद मिल सकती है।" एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) के 2013 के इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि हृदय जोखिम में हृदय जोखिम वाले कारकों पर, खासकर मोटापे से ग्रस्त विषयों में, ऊंचा जोखिम वाले कारकों को कम करता है

गाउट (गठिया) (अतिरिक्त यूरिक एसिड की वजह से)

गठिया के लिए एक लोकप्रिय घर उपाय, प्रभावित क्षेत्र में शहद का सीधा इस्तेमाल (इसकी जरुरत के अनुसार) गठिया और सूजन के कारण को ठीक करने में मदद कर सकता है।

हाइपोग्लाइसीमिया

मुंह के छिद्र में शहद की थोड़ी सी कोटिंग प्रभावित व्यक्ति को आवश्यक चीनी तुरंत अपने सिस्टम में प्रदान करता है। इस पर कोई प्रत्यक्ष औषधीय उलझन नहीं हो सकती है, लेकिन प्रभावित व्यक्ति के पुनरुद्धार के लिए अधिक है।

अनिद्रा

अनिद्रा को ठीक करने के लिए माथे पर थोडे से शहद को और थोडे से नींबू के रस को मिलाकर लगाना आयुर्वेद में एक आम बात है। हालांकि, यदि आप चींटियों को अपने तकिया बांटने के विचार की सराहना नहीं करते हैं, तो आप दूध के साथ इस प्राकृतिक शामक पदार्थ को खा भी सकते हैं। शहद की मिठास के कारण आपका इंसुलिन स्तर बढ़ता है, जो बारी-बारी से हार्मोन छोडता है जिससे आप सो जाते हैं

लाइपोमा

त्वचा पर शहद के सीधे इस्तेमाल से ये (सौम्य) चरबीदार सूजन कम या समाप्त किया जा सकता है, जो एक प्राकृतिक विरोधी के रूप में कार्य करता है।

पीलिया

केले, पपीता के पत्ते की पेस्ट और अदरक की चाय यह सब पीलिया से ग्रस्त मरीजों के लिए उत्कृष्ट घरेलू उपचार हैं, लेकिन शहद के साथ लेने पर और भी प्रभावी ढंग से काम करते हैं। यह आयुर्वेदिक दवाओं के साथ भी लिया जा सकता है जो विशेष रूप से पीलिया के लिए सिफारिश की जाती हैं।

एलर्जी


यह एक प्राकृतिक वैक्सीन के रूप में कार्य करता है क्योंकि इसमें पराग बहुत कम मात्रा में है। हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की तरह यह रोग प्रतिकारक शक्ति को बढाता है, शरीर को दक्षता के साथ वास्तविक एलर्जी (पराग, खांसी आदि) के खिलाफ बचाव और हमले का निर्माण करने के लिए तैयार करता है।

आयुर्वेदिक शुद्धिकरण आहार ले।

आयुर्वेदिक शुद्धिकरण आहार ले। 

आयुर्वेदिक शुद्धिकरण आहार क्या है

यह एक विशेष प्रकार का आहार है जो हमारे शरीर में संचित विषाक्त द्रव्यों को बाहर निकाल कर उसे शुद्ध करता है| यह सुपाच्य होता है| इसके सेवन से हमारे पाचन तन्त्र को विश्राम मिलता है और वह विजातीय द्रव्यों के पाचन और शरीर से उसके निष्कासन में सक्रिय हो जाता है| यह आहार हमारे पूरे शरीर को विजातीय द्रव्यों से मुक्त करने में सहायक है|

क्या यह विभिन्न प्रकृति (जैसे वात,पित और कफ) के लिए अलग अलग होता है? इसके सेवन को तय करने का क्या आधार है ayurvednow 

शुद्धिकरण आहार दो प्रकार का होता है| इसमें पहला आहार साधारणतया सभी लोगों के लिए लाभप्रद होता है तथा इसे हर व्यक्ति ले सकता है| दूसरा आहार-लोगों के शरीर में उपस्थित विजातीय द्रव्य ( जिसे आयुर्वेद में “आंव” कहा जाता है). की मात्रा व शरीर के किस अंग में उसका जमाव व प्रभाव है, इस के आधार पर तय किया जाता है| इसके लिए व्यक्ति के शरीर की प्रकृति ( वात-आंव , कफ-आंव व पित-आंव) को भी ध्यान में रखा जाता है| यह जानने के लिए कि शरीर में किस प्रकार का आंव संचित है तथा उसकी क्या मात्रा है, एक विशेषज्ञ (आयुर्वेदिक डॉक्टर ) नाड़ी परीक्षा तथा अन्य तरीकों से जांच करता है|

शरीर को इन विषाक्त द्रव्यों (आंव या टोक्सिन) से मुक्त करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है

क्योंकि हमारे वातावरण में विभिन्न प्रकार के विषाक्त पदार्थ उपस्थित रहते हैं| विभिन्न प्रकार के भोजन भी हमारे शरीर में इस विष को उत्पन्न करते है| हम हमेशा स्वस्थ जीवन चर्या नहीं अपना पाते और स्वास्थ्य के अनुकूल भोजन नहीं कर पाते| इसके अतिरिक्त वातावरण में उपस्थित विकिरण तथा मानसिक तनाव का भी शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव होता है| साधारणतया हमारा शरीर तन्त्र इस विष संचयन को निष्काषित करने में सक्षम होता है और यह एक दैनिक प्रक्रिया के रूप में स्वत: निष्काषित होता रहता है| पर कभी कभी यह ठीक से हो नहीं पाता या हम इस शुद्धिकरण की प्रक्रिया के प्रति उदासीन हो जाते हैं| अगर हम अपने शरीर की जैविक घड़ी के अनुसार चले और प्राकृतिक जीवन जियें तो यह विजातीय द्रव्य निष्काषित होता रहता है| अगर हम पर्याप्त मात्रा में पानी पियें और योग व व्यायाम करते रहे तो शरीर से मल व पसीना निकलता है जो शरीर के शुद्धिकरण में सहायक होता है| आयुर्वेद की अवधारणा कुछ अलग है| जैसे अगर आप अच्छी मात्रा में भोजन करते है तो यह वात के शमन में सहायक होता है|

इस प्रक्रिया को कितने अन्तराल में दुहराते रहना चाहिए 

यह आपके शरीर में संचित विषाक्त पदार्थो की मात्रा पर निर्भर करता है| साधारणतया इसे हर तीन महीने बाद एक बार करना चाहिए| कुछ लोगो के लिए इसे वर्ष में एक बार करना भी पर्याप्त होता है|

इसमें किस प्रकार का भोजन लेना होता है

जीर्ण रोगों से ग्रस्त लोगों के लिए एक साधारण भोजन शैली से लाभ नहीं होता| उनके लिए विशेषज्ञ द्वारा एक विशिष्ट आहार तय किया जाता है| विषाक्त पदार्थो के निष्कासन के लिए एक उपचार पद्धति है जिसे पंचकर्म कहते है| इस पद्धति में भी विभिन्न आहारों को सम्मिलित किया जाता है पर इसमें आहार से अधिक संचित मल के निष्कासन पर जोर दिया जाता है| मधुमेह रोगियों के लिए उचित है कि वे किसी विशेष आहार प्रणाली को अपनाने से पहले अपने डाक्टर से परामर्श अवश्य करे व उनके द्वारा सुझायी गयी आहार तालिका को अपनाये|
यहाँ हम जो आहार बता रहे है वह बहुत ही सुरक्षित है एवं उसे कोई भी व्यक्ति अपना सकता है| अपनी व्यक्तिगत शारीरिक दशा के अनुसार आप इसमें थोड़ा परिवर्तन भी कर सकते है|
इस आहार में पहले तीन दिन फल, फलों का रस ,तरकारी व तरकारी के रस का सेवन करना चाहिए. ये सभी कच्चे होते है (पकाने की आवश्यकता नहीं)| ये हलके व सुपाच्य होते हैं तथा विजातीय द्रव्यों के निष्कासन में सहायक है| तीन दिन के पश्चात फलों , तरकारियों व इनके रसो के साथ आप धीरे धीरे पक्वाहार पर आते है| इसमें आप सूप, मूंग दाल का सूप तथा दाल के सेवन से शुरू करे| इसके साथ साथ खिचड़ी भी सम्मिलित कर सकते है| यह १० दिन के लिए एक संतुलित आहार तालिका है जिसे कोई भी व्यक्ति अपना सकता है|
मधुमेंह के रोगी फलों के स्थान पर सिर्फ तरकारियाँ व तरकारी के रस का सेवन करें, तथा अपने डाक्टर के परामर्श से कुछ अन्य भोज्य पदार्थ भी ले सकते है| अपने शरीर की आवश्यकताओं को आप बेहतर समझते हैं अत: अगर आपको प्रत्येक ३ घंटे के बाद कुछ खाने की आवश्यता पड़े तो आप उस हिसाब से अपने आहार को व्यवस्थित कर सकते हैं|
दूसरी प्रकार की आहार तालिका पूरी तरह से व्यक्तिगत होती है जिसके लिए किसी योग्य आहार विशेषज्ञ से परामर्श कर तय किया जाता है|

इस आहार को कितने समय तक तथा कितने अन्तराल में पुन: अपनाना चाहिए

इसे प्रत्येक तीन महीने के बाद १० दिन के लिए लिया जाना चाहिए| अर्थात एक वर्ष में चार बार हम इसे प्रत्येक ऋतु परिवर्तन के दौरान ले सकते है| ऋतु परिवर्तन के समय हमारे शरीर में कई परिवर्तन होते है| भोजन में भी कुछ बदलाव होता है| इस समय शरीर में विषाक्त तत्वों के संचयन की सम्भावना अधिक होती है|

इस आहार के सेवन के बाद क्या हम पुन: अपनी पारम्परिक भोजन शैली पर आ सकते हैं

बेहतर है कि हम धीरे धीरे अपनी पुरानी भोजन शैली पर लौट आयें| पर साथ ही यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम सदैव स्वास्थ्य-वर्धक भोज्य पदार्थो का सेवन करे| हमारा शरीर कई प्रकार के भोजन को पचा नहीं पाता है| अपने आहार का चयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखे कि वह स्थानीय उपज हो, प्राकृतिक हो, अच्छी तरह से पका हो, ताज़ा हो और रसायन मुक्त हो| अगर हम इन बातों को ध्यान में रख कर भोजन लेते है तो हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा| आज कल लोग इस तरह के आहार को अपना रहे हैं| भारत एक ऐसा देश है जिसमे साल भर ताज़ा भोजन उपलब्ध है| हमे डिब्बा बंद भोजन खरीदने की आवश्यकता नहीं होती| इसके विपरीत अनेक देशो को भोजन आयात करना होता है|

इस प्रकार के भोजन को अपनाने से क्या क्या लाभ है

आपकी पाचन शक्ति में सुधार होता है| नींद अच्छी आती है| त्वचा साफ़ सुन्दर और स्निग्ध हो जाती है| शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ जाता है|
जीर्ण रोगियों में में कई बार एक ऐसी अवस्था देखी गयी है जिसमें शरीर उपचार से लाभान्वित नहीं होता| ऐसी स्थिति में आहार चिकित्सा करते समय सावधानी बरतनी चाहिए एवं विशेष निगरानी रखनी चाहिए| वैसे यह नगण्य स्थिति है| और ऐसा होने पर रोगी को पुन: उसके नियमित सामान्य आहार पर ला सकते हैं|
यह कैसे पता चले कि आपके शरीर को इस उपचार की आवश्यकता है : अगर आपको अपच की शिकायत हो, नींद ठीक से न आती हो, त्वचा रोग हो, पेट फूलता हो, कमर या जोड़ों में दर्द हो, बाल झड रहे हो या आँखों में समस्या हो तो आप डाक्टर के पास जाते हैं| डाक्टर कह सकता है की आपको कोई रोग नहीं है| फिर भी अगर आप इन समस्याओं से परेशान है तो यह एक स्पष्ट संकेत है की आपके शरीर में विषाक्त तत्व संचित हो गए है|
आयुर्वेद चिकित्सा में रोग निदान हेतु नाड़ी परीक्षा की एक अनूठी विधा प्रयोग में लाई जाती है जिससे यह पता लग जाता है कि विषाक्त पदार्थो के जमाव से शरीर के किस अंग पर उसका प्रभाव पड़ रहा है| अत: यह अति आवश्यक है कि नाड़ी परीक्षा करवाई जाये ताकि शरीर में होने वाले रोगों से बचा जा सके|
 आयुर्वेद को अपना कर हम कैसे स्वस्थ रहे
स्वस्थ जीवन के लिए तीन बातें जरुरी है: भोजन, स्वस्थ जीवन शैली एवं मन की स्थिति|

भोजन:

स्वस्थ रहने के लिए भोजन की एक महत्वपूर्ण भूमिका है| अत: यह आवश्यक है की हम ऋतु अनुसार हो रही स्थानीय ऊपज का अधिक प्रयोग करे, ताज़ा व रसायन मुक्त भोजन पाचनतंत्र के लिए हल्का व स्वास्थ्य के लिए उतम होता है|

स्वस्थ जीवन शैली:

प्रकृति में एक लय है| दिन का समय काम के लिए व रात्रि विश्राम के लिए है| हमारे शरीर में एक जैविक घड़ी है जो सूर्य की स्थिति का अनुसरण करती है| हमारा शरीर यह जानता है कि कब हमें काम करना चाहिए तथा कब विश्राम| दिन में हमारा शरीर पोषण प्राप्त करता है और रात्रि में विषाक्त पदार्थो के पाचन व निष्कासन में क्रियाशील रहता है| विशेष कर हमारा लीवर (यकृत) व गौल ब्लेडर (पित थैली) रात्रि में ही सफाई का काम करते हैं| अगर कोई व्यक्ति रात्रि में ठीक से नहीं सोता तो उसके शरीर से विषाक्त पदार्थों का उन्मूलन नहीं होता है| इसलिए जैविक घड़ी के अनुसार जीवन जीना आयुर्वेद शास्त्र का एक प्रमुख विषय है जिसे “दिनचर्या” कहते है|
कुछ लोग अपनी व्यावसायिक स्थितियों के कारण जैविक घड़ी के अनुसार नहीं चल पाते| वे इससे होने वाली क्षति से बचने के लिए विशेष मार्गदर्शन को अपना सकते हैं|

मन की अवस्था:

स्वस्थ जीवन शैली में व्यक्ति की मानसिक अवस्था की महत्व पूर्ण भूमिका है| जो भी सुखद या दुखद घट रहा है उस पर किसी का कोई वश नहीं चलता| पर अप्रिय घटनाओं पर आपकी प्रतिक्रिया सदैव एक जैसी नहीं होती|
जब आप शांत होते है तो आप इन घटनाओ पर क्रोधित या परेशान नहीं होते| पर अगर आप अशांत है तो आप का अपने मन पर नियंत्रण नहीं रहता| क्रोध की अवस्था में आपके शरीर का तापमान बढ़ जाता है जबकि दुःख की अवस्था में आपका तापमान गिर जाता है|
यह एक प्रमाणित सत्य है कि मन शरीर को प्रभावित करता है l मन की भिन्न भिन्न स्थितियों से शरीर में दिनभर में अनेक शारीरिक परिवर्तन होते रहते है और आप नहीं जानते की अपने मन को कैसे संभाले और इसमें उठ रही विभिन्न भावनाओं से कैसे मुक्त हो|
हम अपने शरीर और मन के साथ जन्म लेते है| शरीर के बारे में तो फिर भी हमें थोड़ा बहुत सिखाया गया है कि हम इसे कैसे स्वस्थ रखें, स्वच्छता बनाये रखे व अस्वस्थ होने पर कैसे उपचार करे| पर अपने मन के बारे में हमें उचित ज्ञान नहीं मिला| चूंकि मन का शरीर पर बहुत प्रभाव पड़ता है, हमरे लिए यह अत्यावश्यक है कि हम अपने मन को सँभालने के बारे में जाने|
योग और ध्यान मन को कुशलता से सञ्चालन का प्रशिक्षण प्रदान करते है| आज कल अधिकांश लोग समय का अभाव, ऊर्जा में कमी और काम की अधिकता की समस्या से ग्रस्त है| काम की अधिकता और समय की कमी- ये दोनों हमारे नियंत्रण में नहीं है, पर हम योग और ध्यान के द्वारा अपने ऊर्जा के स्तर में वृद्धि कर सकते है, अपनी मानसिक और भावनात्मक अवस्था को उच्चता प्रदान कर, हमतनाव व क्रोध को कम कर सकते है| इस प्रकार हम अपने जीवन को अधिक स्वस्थ व सुखकर बना सकते है|

झड़ते बालों के लिए अमरूद के पत्ते, ऐसे करना होगा इस्तेमाल

झड़ते बालों के लिए अमरूद के पत्ते, ऐसे करना होगा इस्तेमाल

आइए जानते हैं ये कैसे असर करता है और इनका किस तरह से इस्तेमाल करना होता है।अमरुद की पत्तियों में कई तरह के पोषक तत्व होते हैं और ये काफी लोकप्रिय भी है। इन पत्तियों में विटामिन बी और सी की मात्रा भी बहुत अधिक होती है, जो कि बाल उगाने या बालों को झड़ने से रोकने में मदद करता है।ayurvednow.blogspot.com

कई लोग अमरूद खाने के शौकीन होते हैं और अगर आपके सामने भी अमरूद आ जाता है तो आप भी अपने आप को रोक नहीं पाते होंगे और अमरूद खा ही लेते होंगे। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि स्वाद में बेहतरीन लगने वाले अमरूद की पत्तियों से आप एक बहुत बड़ी दिक्कत दूर कर सकते हैं। यह दिक्कत भी ऐसी है जिसकी वजह से आपको दिन में कई बार शर्म का अहसास करना पड़ता है और यह दिक्कत है बालों का झड़ना। आपको बता दें कि अमरूद की पत्तों से आप बाल झड़ने की दिक्कत को दूर कर सकते हैं। आइए जानते हैं ये कैसे असर करता है और इनका किस तरह से इस्तेमाल करना होता है।ayurvednow.blogspot.com
अमरुद की पत्तियों में कई तरह के पोषक तत्व होते हैं और ये काफी लोकप्रिय भी है। इन पत्तियों में विटामिन बी और सी की मात्रा भी बहुत अधिक होती है, जो कि बाल उगाने या बालों को झड़ने से रोकने में मदद करता है। वहीं पत्तियों में मौजूद विटामिन सी बालों की वृद्धि में कॉलेजन एक्टिविटी में सुधार लाती है और इसका लाइकोपेन बालों और खोपड़ी को यूवी किरणों से सुरक्षा प्रदान करते हैं।ayurvednow.blogspot.com
कैसे करें इस्तेमाल-
– सबसे पहले अमरूद की पत्तियां और एक कटोरा लें और पत्तियों को 20 मिनट तक पानी में डालकर उबालें और उसके बाद इसे रूम के तापमान में आने तक ठंडा होने दें। हालांकि इस बात का ध्यान रहे कि जब आप इसका इस्तेमाल करें तो आपके बालों में कुछ भी नहीं लगा हो, इसलिए ये लगाने से पहले अपने बाल धो लें।
– जब आपके बाल बिल्कुल सूख जाएं तो इस पानी से खोपड़ी की 10 मिनट तक मसाज करें और ध्यान रहे कि ये अच्छे से लग जाए। ऐसा करने से ब्ल्ड सर्कुलेशन ठीक होता है जो कि आपके बालों के लिए सही है।
 जब ये लगाएं तो इसे जड़ों में लगाने की कोशिश करें। साथ ही इसे 2 घंटे तक बालों में लगा रहने दें और इसे तौलिए से साफ करके सो जाएं। उसके बाद सुबह गुनगुने पानी से धो लें और ध्यान रहे कि ज्यादा गर्म पानी इस्तेमाल ना करें। बता दें कि अगर आपको बाल झड़ने की दिक्कत है तो ऐसा एक हफ्ते में तीन बार कर लें, इससे आपको धीरे-धीरे फर्क नजर आने लगेगा....